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‘कमज़ोर शासन से होता है पतन’: एनएसए अजीत डोभाल ने बांग्लादेश, श्रीलंका में हुए परिवर्तनों का दिया उदाहरण…

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने शुक्रवार को कहा कि “किसी राष्ट्र की असली शक्ति उसके शासन की मजबूती में होती है। हाल ही में बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में हुए परिवर्तन कमजोर शासन के उदाहरण हैं।”

उन्होंने कहा, “जब सरकारें कमजोर, स्वार्थी या अव्यवस्थित होती हैं, तो परिणाम हमेशा एक जैसे होते हैं। संस्थाएँ किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती हैं, और उन्हें बनाने तथा संवारने वाले लोग ही राष्ट्र की नींव को मजबूत करते हैं।”

डोभाल ने कहा कि महान साम्राज्यों, लोकतंत्रों और राजशाहियों का पतन हमेशा खराब शासन के कारण ही हुआ है। जब शासन तानाशाही बन जाता है और संस्थाएँ कमजोर होने लगती हैं, तभी किसी देश का पतन शुरू हो जाता है।

दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर एक व्याख्यान में बोलते हुए उन्होंने कहा,
“एक सुरक्षा अधिकारी के दृष्टिकोण से, मैं शासन को केवल प्रशासन नहीं मानता, बल्कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास की एक प्रमुख प्रणाली के रूप में देखता हूँ। किसी संस्कृति को राष्ट्र-राज्य में बदलना बहुत कठिन कार्य है, और यह केवल मजबूत शासन के माध्यम से ही संभव है। सरकार को साधारण अपेक्षाओं से आगे बढ़ना चाहिए।”

डोभाल ने खराब शासन की तीन वजहें बताईं

  1. तानाशाही प्रवृत्ति: भेदभावपूर्ण कानून, न्याय में देरी और मानवाधिकारों का हनन।

  2. संस्थागत पतन: भ्रष्ट या असंवेदनशील सेना, नौकरशाही और सुरक्षा तंत्र।

  3. आर्थिक असफलता: भोजन और पानी की कमी, महंगाई तथा करों का बोझ।

“नए दौर में शासन और अधिक जटिल हो गया है” — डोभाल

एनएसए डोभाल ने कहा कि वर्तमान में सरकारें नई परिस्थितियों से जूझ रही हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन यह है कि आम आदमी अब अधिक जागरूक, महत्वाकांक्षी और अपेक्षाओं से परिपूर्ण हो गया है। इसलिए राज्य को अधिक जवाबदेह बनना होगा।

उन्होंने कहा कि साल 2025 में सरदार पटेल के दृष्टिकोण को पुनः अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि उन्होंने दिखाया था कि केवल एक मजबूत और निष्पक्ष शासन ही विविधता से भरे देश को एक सूत्र में बांध सकता है।

डोभाल ने कहा, “भारत इस समय केवल परिवर्तन के नहीं, बल्कि महापरिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। हमारी शासन व्यवस्था, सामाजिक संरचना और वैश्विक व्यवस्था—सब तेजी से बदल रही हैं। ऐसे समय में सरदार पटेल की दृष्टि पहले से अधिक प्रासंगिक हो जाती है।”

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