
बिहार चुनाव 2025: एनडीए की जटिलताएं और सीट बंटवारे की चुनौतियाँ
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी तेज हो गई है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (यू) के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर की खींचतान और सीट बंटवारे को लेकर चर्चाएँ ज़ोर पकड़ रही हैं। एनडीए में कुल 235 सीटें हैं, जिनमें से तस्वीर स्पष्ट हो गई है, लेकिन अभी भी 8 सीटों पर मतभेद कायम हैं। यह स्थिति एनडीए को नुकसान पहुँचा सकती है, जैसा कि कई नेताओं द्वारा व्यक्त किया गया है।
एनडीए में संकट
चुनावी माहौल में एनडीए के लिए कई चुनौतीपूर्ण बिंदु सामने आए हैं। नीतीश कुमार, जो जेडीयू के नेता हैं, बीजेपी को एक बार फिर मात देने में सफल रहे हैं। नीतीश का यह कदम चुनावी दांव-पेंच में बदल गया है, जिससे बीजेपी के भीतर चिंता और असमंजस बढ़ गया है। यदि सीट बंटवारे के मुद्दे को ठीक से नहीं सुलझाया गया, तो रणनीतियों की कमी एनडीए के लिए भारी पड़ सकती है।
धर्मेंद्र प्रधान का हस्तक्षेप
मिशन बिहार के तहत केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सूत्र बताते हैं कि वे चिराग पासवान को मनाने में लगे हुए हैं ताकि पीएम मोदी के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास किए जा सकें। धर्मेंद्र प्रधान की तात्कालिक योजनाओं में एनडीए में सीट बंटवारे को सुलझाने की कोशिशें शामिल हैं। उनके प्रयासों का असर इस बात पर टिकेगा कि क्या वे चिराग को गठबंधन में उचित स्थान दिलाने में सफल होते हैं या नहीं।
जीतन राम मांझी की स्थिति
हाल में जीतेन राम मांझी ने पहले कहा था कि वे एनडीए के निर्णयों से संतुष्ट हैं, लेकिन अब उन्होंने बयान दिया है कि कम सीटों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। यह उनका बिंदास फीडबैक इस बात का संकेत है कि हर कोई एनडीए में अपनी स्थिति को लेकर चिंतित हैं। मांझी का यह बयान गठबंधन के भीतर की असहमति को उजागर करता है, जो चुनाव में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सीटों की संभावित संख्या
नीतीश कुमार ने अपने ‘बलिदान’ से चिराग पासवान को बड़ा झटका दिया है। यह देखा जा रहा है कि एनडीए में कितनी सीटें उन्हें मिल सकती हैं। यदि चुनावी रणनीति को लेकर सही निर्णय नहीं लिए गए, तो बीजेपी को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ सकता है।
मांझी का दर्द
बिहार में सीट बंटवारे के मुद्दे पर जीतेन राम मांझी का दर्द छलका। उनका कहना है कि चुनाव में एनडीए को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। यह स्पष्ट है कि मांझी जैसे नेता इस बात को लेकर गंभीर हैं कि सीट बंटवारे में यदि सही निर्णय नहीं लिए गए, तो गठबंधन कमजोर हो सकता है।
चुनाव की तैयारी
चुनाव की तैयारी करते समय मुद्दों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सीटों की संख्या और बंटवारा कैसे होगा, इसके ढांचे में सभी पार्टियों को सामंजस्य बनाना पड़ेगा। एनडीए के भीतर की इन जटिलताओं का पारदर्शी ढंग से निपटारा होना चाहिए। यदि यह सही दिशा में नहीं बढ़ा, तो एनडीए की स्थिति कमजोर हो सकती है।
भविष्य का दृष्टिकोण
सम्भवतः यह चुनाव बिहार में राजनीतिक समीकरणों को बहुत हद तक बदलने की क्षमता रखता है। एनडीए के गठबंधन को जैसे ही मजबूत होना है, राजनैतिक दलों को आपस में बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देना होगा। यह न केवल सीट बंटवारे के संदर्भ में है, बल्कि आम जनता की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए चुनावी रणनीतियाँ तैयार करने की दिशा में भी कारगर सिद्ध हो सकता है।
परिणाम
कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए की तैयारी काफी चुनौतीपूर्ण है। नेताओं के बीच मतभेद और स्थिति को लेकर चिंता अभी भी बरकरार हैं। यदि वक्त रहते सही निर्णय लिए गए, तो एनडीए अपनी मजबूती को बरकरार रख सकता है, अन्यथा परिणाम उलट भी सकते हैं।
इस चुनाव के परिणाम ना केवल बिहार की राजनीति पर बल्कि देश के राजनीतिक परिदृश्य पर भी गहरा असर डाल सकते हैं। सभी दलों को अपनी-अपनी स्थिति को ताकतवर बनाने के लिए एकजुटता के साथ आगे बढ़ना होगा।
इन चर्चाओं और पर्यवेक्षण के दृष्टिगत, यह स्पष्ट है कि बिहार चुनाव 2025 एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होने वाला है, जहां सही निर्णय और रणनीतियाँ ही गठबंधन के भविष्य का निर्धारण करेंगी।