राष्ट्रीय

छत्तीसगढ़ : रायगढ़ में श्रम न्यायालय का बड़ा एक्शन, पांच उद्योगों पर लगाया इतने लाख का जुर्माना

रायगढ़ जिले के पांच उद्योगों में लगातार हादसों व मजदूर मौतों के बाद औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग की जांच में श्रम न्यायालय ने जुर्माना लगाया। उप संचालक राहुल पटेल ने बताया कि आपराधिक प्रकरणों में आगे कार्रवाई जारी है।

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में स्थापित उद्योगों में सुरक्षा मानको की कमी के चलते हुए हादसों के बाद श्रम न्यायालय ने कारखाना अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन पाये जाने के बाद पांच उद्योगों के खिलाफ 8 लाख 83 हजार का जुर्माना लगाया है।

रायगढ़, छत्तीसगढ़ — एक औद्योगिक जिला, जहां कोयला, पावर प्लांंट, इस्पात, पावर जनरेशन, और अन्य भारी-उद्योगों की बहुतायत है। ये उद्योग राज्य की आर्थिक रीढ़ हैं, लेकिन उनकी सफलता के लिए सबसे बुनियादी ज़रूर है — अर्थात् मजदूरों की ज़िंदगी और उनके अधिकार।

मजदूरों की जान, उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं उचित श्रम मानक उन उद्योगों की सच्ची पूँजी है। पर अक्सर देखा गया है कि ये ज़रूरी बातें नज़रअंदाज़ हो जाती हैं जब उद्योगों को मुनाफे, उत्पादन त्वरित गति से पूरा करना, लागत कम करना आदि आकर्षित करते हैं।

इस कहानी की शुरुआत होती है उन श्रमिकों की बेमौत मौतों और दुर्घटनाओं से, जिन्हें किसी ने योजनाबद्ध तरह से रोका नहीं, जिन्हें श्रमिकों के शिकायतों से लेकर अधिकारी जांच तक — प्रक्रिया लंबी और टूटी-फूटी होती रही।


समस्या का खुलासा

लगातार दुर्घटनाएँ और मौतें

वर्षों से रायगढ़ जिले में कई उद्योगों में मजदूरों की दुर्घटनाएँ हो रही थीं — मशीनरी की खराबी, सुरक्षा उपकरणों (PPE) की कमी, प्रशिक्षण एवं जागरूकता की कमी, निर्माण स्थल पर सुरक्षा स्टेंडर्ड्स का उल्लंघन। इन दुर्घटनाओं में गंभीर चोटें, कभी-कभी मौतें भी हुईं।

मजदूर अक्सर शिकायत करते रहे कि सुरक्षा मांदंडों पर ध्यान नहीं है — हेलमेट, सुरक्षा बेल्ट, हैंड प्रोटेक्शन, सुरक्षा रक्षात्मक क्लॉथिंग आदि की कमी है। श्रम विभाग की ओर से भी शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन कार्रवाई अपेक्षानुरूप तेज या प्रभावी नहीं हुई।

औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग की जांच की वजहें

निहित-हितों की आवाज़ों, मीडिया रिपोर्टों, कुछ संगठित मजदूरों की शिकायतों, और सबसे ज़्यादा — जब दुर्घटना हो गई, मौत हो गई — तब वहाँ से दबाव बढ़ा कि जांच हो। औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग ने देखा कि ये मुद्दे सिर्फ एक-दो जगह नहीं हैं, बल्कि व्यापक पैमाने पर हो रहे हैं।

विशेष कर:

  • सुरक्षा मानकों का उल्लंघन: कारखाना अधिनियम (Factories Act) आदि कानूनी प्रावधानों का पालन न होना।

  • सुरक्षा उपकरणों की अनुपस्थिति या अपर्याप्तता।

  • दुर्घटना-स्थल पर त्वरित प्राथमिक चिकित्सा (first aid) व बचाव प्रबंधों की कमी।

  • मजदूरों को प्रशिक्षण न देना, सुरक्षित कार्य प्रथाएँ न सिखाना।

  • मशीनरी की रख-रखाव की अनदेखी।

श्रम न्यायालय की कार्रवाई

औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग की जांच में ये उल्लंघन पाए गए, और बाद में श्रम न्यायालय ने सम्बंधित उद्योगों के खिलाफ क़ानूनी प्रावधानों के उल्लंघन के आधार पर पांच उद्योगों को ₹8,83,000 (आठ लाख तिरासी हजार) का जुर्माना लगाया।

उप संचालक राहुल पटेल ने बताया कि आपराधिक प्रकरणों में आगे की कार्रवाई जारी है — अर्थात् सिर्फ जुर्माना ही नहीं, बल्कि उन उद्योगों या उनके प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक मुकदमे भी हो सकते हैं जहाँ दुर्घटना या मौत की गम्भीर भूमिका पाये जाने पर।


जुर्माने के बाद का असर

मजदूरों पर असर

  • सुरक्षा उपायों में सुधार: अधिकांश उद्योगों ने सुरक्षा उपकरणों की व्यवस्था बेहतर की — हेलमेट, सेफ़्टी बेल्ट, सेफ्टी शूज़ आदि।

  • चेतना एवं प्रशिक्षण बढ़ा: श्रमिकों को यह विश्वास हुआ कि शिकायतें सुन ली जाएँगी, कार्रवाई होगी, इसलिए उन्होंने अधिक जागरूक होकर माँग की। उद्योगों ने कुछ-कुछ प्रशिक्षण सत्र तथा सुरक्षा नियमों की घोषणा की।

  • कुछ न्यायिक राहत की उम्मीद: मजदूरों में यह विश्वास मजबूत हुआ कि कानूनी व्यवस्था उनके हक में काम कर सकती है; कि मौत या दुर्घटना के बाद भी अगर मामला उठे तो न्याय संभव है।

उद्योगों और प्रशासन पर असर

  • उद्योगों को लागत बढ़ी: सुरक्षा उपायों की व्यवस्था, प्रशिक्षण, मशीनरी में सुधार, निरीक्षण आदि पर खर्च करना पड़ा।

  • प्रशासन तथा औद्योगिक विभागों की निगरानी सक्रिय हुई: औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग, श्रम विभाग एवं श्रम न्यायालयों द्वारा निरीक्षण की फ्रीक्वेंसी बढ़ी।

  • कानूनी चेतावनी प्रभावी हुई: जुर्माना तथा भविष्य के मुकदमों की संभावना ने उद्योगों में कुछ भय उत्पन्न किया कि यदि पुनः दुर्घटना हुई तो दंड और सार्वजनिक आलोचना बढ़ेगी।


गहरी चुनौतियाँ और कमी

हालाँकि जुर्माना और जांच-कार्रवाई महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन समस्या सिर्फ कानूनी दंड तक सीमित नहीं है। गहरी समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं:

  1. लाभ और गति का दबाव
    उद्योगों को उत्पादन लक्ष्य, समय सीमा, लागत नियंत्रण आदि का दबाव होता है। ऐसे में सुरक्षा मानकों को पूरा करना, नियमित निरीक्षण, प्रशिक्षण आदि को अक्सर ‘समय लगने वाला’ माना जाता है और पीछे छोड़ दिया जाता है।

  2. शिक्षा व जागरूकता की कमी
    सिर्फ मजदूर ही नहीं — प्रबंधन, सुपरवाइज़र, इंजीनियर्स — सभी के बीच सुरक्षा सम्बन्धी ज्ञान और जागरूकता में अंतर है। कई मामलों में उद्योगों को कानूनी दायित्वों का पूरा भरोसा नहीं होता, या उन्हें लगता है कि उल्लंघन पर कार्रवाई नहीं होगी।

  3. निरीक्षण एवं अमल की कमी
    हालांकि जांच हुई, लेकिन नियमित, अप्रत्याशित निरीक्षण की कमी रही। अमल (enforcement) में देरी, पूरक संसाधनों की कमी, और कुछ मामलों में भ्रष्टाचार-या रसूख वाले उद्योगों के लिए “बायपास” की गुंजाइश बनी हुई है।

  4. श्रृंखला संबंधी निदान
    हादसे या मौतें अक्सर सिर्फ तुरंत देखी जाने वाली वजहों (जैसे मशीन टूटना, सुरक्षा उपकरण न होना) से नहीं होतीं, बल्कि सिस्टम के दोषों से — जैसे प्रबंधन नीतियाँ, कर्मचारियों की ओवरवर्किंग, श्रमशक्ति की कमी, रखरखाव का अभाव, आपातकालीन प्रतिक्रिया (emergency response) योजना न होना आदि।

  5. मुआवजे व कानूनी प्रक्रिया में बाधाएँ
    मजदूरों को फ़ायदा सिर्फ जुर्माने से नहीं मिलता अगर उन्हें उचित मुआवजा न मिले, मौत या चोट पर परिवार की सहायता न हो, और यदि कानूनी प्रक्रिया लंबी चले तो न्याय विलम्ब हो जाए। अधिकतर मजदूर आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, उन्हें कानूनी सहायता प्राप्त करना मुश्किल होता है।


कानून व प्रावधान

यहाँ कुछ प्रमुख कानूनी बिंदु हैं जो इस कहानी से जुड़े हुए हैं:

  • Factories Act (भारतीय कारखाना अधिनियम) — उद्योगों में काम करने वालों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण की गारंटी करता है। उपकरणों की सुरक्षित व्यवस्था, मशीनों का सुरक्षित संचालन, आपातकालीन उपायों की आपूर्ति से जुड़े प्रावधान इसमें शामिल हैं।

  • श्रम न्यायालय और श्रम कानून — यदि दुर्घटना या मौत हुई हो और नियमानुसार सुरक्षा उपाय न हों, तो श्रम न्यायालय मामले दर्ज करता है, कमरों की जांच करता है, जुर्माना लगाता है, और आपराधिक प्रकरण भी हो सकते हैं।

  • औद्योगिक स्वास्थ्य विभाग — यह विभाग उद्योगों के स्वास्थ्य मानकों की जांच करता है, सुरक्षा ऑडिट कराता है, निरीक्षण करता है, और यदि उल्लंघन पाया जाए तो विभागीय कार्रवाई करता है।

  • मजदूरों के अधिकार — सुरक्षित कार्य स्थल, उचित सुरक्षा उपकरण, समय पर वेतन, दुर्घटना होने पर मुआवजा, बीमा आदि।

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