नदी पर पुल नहीं, पालघर में गर्भवती महिला को बाढ़ के पानी से ले जाया गया अस्पताल;

राहुल पाटील, संवाददाता, पालघर, 25 जुलाई : जिले के जव्हार, मोखाड़ा और विक्रमगड़ क्षेत्रों के दुर्गम गाँवों को जोड़ने वाले रास्ते और नदियों पर पुल न होने के कारण नागरिकों को बहती नदियों के खतरनाक प्रवाह में जीवन को जोखिम में डालकर यात्रा करनी पड़ रही है। मोखाड़ा तहसील की कुर्लोद ग्रामपंचायत क्षेत्र में लगभग चार से पांच गांवों को जोड़ने वाली पिंजाळ नदी पर पुल न होने के कारण यहाँ के नागरिकों को नदी के बहते पानी में जीवनघातक यात्रा करनी पड़ रही है। कुर्लोद ग्रामपंचायत क्षेत्र के शेंड्याचा पाड़ा, आंबे पाड़ा, रायपाड़ा और जांभूळपाड़ा के नागरिकों को मानसून में नदी के तेज बहाव से गुजरना पड़ता है। इन गांवों की जनसंख्या 500 से अधिक है।
गाँव से बाहर निकलने के लिए ग्रामस्थों को पिंजाळ नदी पार करनी पड़ती है और इस नदी पर पुल न होने के कारण उन्हें भारी कठिनाइयाँ सहनी पड़ती हैं। मानसून के चार महीनों में पिंजाळ नदी पूरी तरह भर जाती है और इस दौरान शिक्षक भी गाँव तक पहुँच नहीं पाते, जिससे बच्चों के शैक्षणिक भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वहीं, यदि किसी को गाँव में अचानक रोग या आपात स्थिति होती है, तो लकड़ी और चादरों की सहायता से डोली में बैठाकर मरीज को लकड़ी की फली पर नदी पार करनी पड़ती है। कल एक गर्भवती महिला को अचानक उल्टी होने लगी, उसे पहले डोली और फिर लकड़ी की फली पर नदी पार करना पड़ा। इस घटना का वीडियो सामने आया है, जिसके बाद लोगों में भारी रोष व्याप्त है।
पिछले कई वर्षों से इस स्थान पर पिंजाळ नदी पर पुल की मांग की जा रही है, लेकिन प्रशासन और सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। इसलिए स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि शेंड्याचा पाड़ा, आंबे पाड़ा, रायपाड़ा और जांभूळपाड़ा के नागरिकों के लिए जल्द से जल्द पिंजाळ नदी पर पुल का निर्माण किया जाए, ताकि उन्हें गाँव से बाहर निकलने में सुविधा हो। पालघर जिले में आज भी सैकड़ों गांवों तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़कें नहीं हैं। इस कारण, मानसून में नागरिकों को अपनी जान जोखिम में डालकर गाँव से बाहर जाना पड़ता है।
मुंबई और ठाणे जैसे महानगरों के निकट स्थित पालघर जिले में यह भयंकर वास्तविकता दिन-प्रतिदिन उजागर हो रही है। सरकार इस पर कब ध्यान देगी, यह सवाल उठता है। पालघर जिले के निर्माण के बाद विकास कार्यों और बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार द्वारा सैकड़ों करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन इन निधियों का पूरा उपयोग न होने के कारण यह राशि हर साल फिर से जमा कर दी जाती है। जिले के निष्क्रिय स्थानीय प्रतिनिधियों और प्रशासन की वजह से आज भी गाँव बुनियादी सुविधाओं और सड़कों से वंचित हैं।