**छठ पर्व 2025 के उपलक्ष्य में अंतिम दिन उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया गया।** 🌅

मंगलवार को छठ पर्व का अंतिम दिन है।
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से हुई थी। आज उगते सूर्य को “उषा अर्घ्य” अर्पित किया जा रहा है, जो 36 घंटे के कठिन व्रत की समाप्ति का प्रतीक है। उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने का शुभ मुहूर्त सुबह 6:27 बजे तक था। देश और विदेश में छठ पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।
मंगलवार की सुबह से ही नदियों और तालाबों के किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। “उषा अर्घ्य” के सामूहिक अर्पण के दृश्य देश के विभिन्न भागों — बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र (मुंबई) — से सामने आ रहे हैं। ठंड बढ़ने के बावजूद महिलाएँ जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती दिखाई दे रही हैं।
इस दौरान, दिल्ली के लगभग 1,300 घाटों पर छठ पूजा का आयोजन किया गया है, जिनमें यमुना नदी के किनारे स्थित 17 प्रमुख घाट शामिल हैं। मुंबई और ठाणे में 83 स्थलों पर सामूहिक छठ पूजा की जा रही है।
छठ पर्व का उत्साह केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी देखा जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन सहित कई देशों में भारतीय श्रद्धालुओं ने सोमवार को सूर्य देव की पूजा की। भारतीय आबादी वाले देशों — फ़िजी, सूरीनाम, मॉरीशस और त्रिनिदाद-टोबैगो — में भी छठ पर्व मनाया गया।
लंदन स्थित ब्रिटिश लाइब्रेरी में पटना कलम शैली में बनी वर्ष 1850 की छठ पूजा की एक पेंटिंग संरक्षित है।
देशभर से छठ पर्व की झलकियाँ —
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बिहार के भागलपुर में छठ पर्व पर सूप में सजाए गए फल।
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उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में अंतिम दिन सूर्य को अर्घ्य देती महिलाएँ।
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ओडिशा के भुवनेश्वर में कुआखाई नदी घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़।
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चंडीगढ़ के सेक्टर 42 स्थित न्यू लेक पर जुटे श्रद्धालु।
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नोएडा (उत्तर प्रदेश) के सेक्टर 21 में महिलाओं ने सूर्य पूजा की।
छठ पर्व के चार दिन —
पहला दिन – नहाय-खाय:
इस दिन घर की सफाई कर स्नान किया जाता है और शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत होती है।
दूसरा दिन – खरना:
इस दिन पूरे दिन निर्जला उपवास रखने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं, जिसे खरना कहा जाता है।
तीसरा दिन:
इस दिन छठ प्रसाद तैयार किया जाता है। नैवेद्य में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फल रखे जाते हैं। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य सजाकर तालाब या नदी के किनारे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्पण किया जाता है।
चौथा दिन:
कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। व्रती उसी स्थान पर लौटकर पूजा संपन्न करते हैं, जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था।
छठ पर्व की विशेषता —
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इस चार दिवसीय पर्व में कोई पुजारी या मंत्रोच्चार आवश्यक नहीं होता। श्रद्धालु स्वयं सूर्य की आराधना करते हैं।
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यह पर्व समाज में समानता का प्रतीक है — गरीब और अमीर, सभी एक ही घाट पर एकसाथ खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
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इस पर्व में कोई भेदभाव नहीं होता; सभी एक-दूसरे को प्रसाद खिलाते हैं और ग्रहण करते हैं।
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प्रसाद में मौसमी फल और सामग्री होती है — ठेकुआ, केला, सिंघाड़ा, नाशपाती, सेब, अमरूद, सीताफल, शकरकंद, मूली, अदरक और हरी हल्दी।
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लोग बिना कहे ही सेवा में लग जाते हैं — कोई रास्ते साफ कर रहा होता है, कोई घाटों की सफाई कर रहा होता है, तो कोई रंग-रोगन में व्यस्त रहता है।
