पुतिन ने कहा – यदि अमेरिकी टोमहॉक मिसाइलों से कोई हमला किया गया, तो हम जवाब देंगे।

१६ अक्टूबर २०२५ को मॉस्को में रूसी एनर्जी वीक में भाषण देते राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि यदि हम पर अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलों से हमला किया गया, तो इसका कड़ा जवाब दिया जाएगा। पुतिन का यह बयान अमेरिका द्वारा रूस की दो तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के तुरंत बाद आया है।
हालांकि, पुतिन बातचीत के लिए भी तत्पर दिखे। उन्होंने कहा, “संघर्ष या किसी भी विवाद में बातचीत हमेशा श्रेष्ठ होती है। हमने हमेशा बातचीत जारी रखने का समर्थन किया है।”
दरअसल, २२ अक्टूबर को ट्रम्प और पुतिन के बीच प्रस्तावित बैठक रद्द होने के बाद अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों, रोसनेफ्ट और लूकोइल पर प्रतिबंध लगाया था। इसका उद्देश्य रूस को युद्ध में मिलने वाली फंडिंग पर रोक लगाना था।
पुतिन ने ट्रम्प के इस कदम की आलोचना की और कहा कि इससे संबंधों में तनाव बढ़ा है। वास्तव में, ट्रम्प अपने कार्यकाल की शुरुआत में रूस के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहते थे, लेकिन यूक्रेन युद्ध में बार-बार सीज़फायर पर असहमति के कारण वे पुतिन से नाराज थे।
पुतिन बोले – अमेरिकी प्रतिबंध से तेल की कीमतें बढ़ेंगी
पुतिन ने कहा कि रूस पर लगाए गए तेल प्रतिबंध से सप्लाई कम होगी, जिससे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। “मैंने ट्रम्प से इस बारे में चर्चा की थी। इससे न केवल रूस, बल्कि अमेरिका और सम्पूर्ण विश्व में तेल महंगा हो सकता है।”
यूएस ट्रेज़री विभाग ने कहा कि रूस युद्ध रोकने को गंभीर नहीं है, इसलिए यह प्रतिबंध लगाए गए हैं। इस फैसले के तहत अमेरिका के अधिकार क्षेत्र में आने वाली इन कंपनियों की सभी संपत्ति और हित प्रभावी रूप से ब्लॉक कर दिए गए हैं।
दो रूसी कंपनियों और ३६ सहायक कंपनियों पर प्रतिबंध
रोसनेफ्ट रूस की सरकारी कंपनी है, जो तेल की खोज, रिफाइनिंग और बिक्री में विशेषज्ञ है। लूकोइल एक निजी स्वामित्व वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी है, जो रूस और विदेशों में तेल और गैस की खोज, रिफाइनिंग, विपणन और वितरण करती है।
इन दोनों कंपनियों की ५०% या उससे अधिक की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी वाली ३६ सहायक कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं।
अखबार द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इन कंपनियों से रूस का आधा कच्चा तेल (क्रूड ऑयल) निर्यात होता है। प्रतिबंधों के प्रभाव से वैश्विक तेल कीमतों में लगभग ५% की बढ़ोतरी हो सकती है। यूरोपीय संघ ने भी रूसी LNG गैस पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है।
रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध २१ नवंबर से लागू होगा
अमेरिकी ट्रेज़री ने २१ नवंबर २०२५ तक का समय दिया है। इस अवधि में अन्य कंपनियों को रोसनेफ्ट और लूकोइल के साथ लेन-देन समाप्त करना होगा। यदि पालन नहीं किया गया, तो जुर्माना, ब्लैकलिस्टिंग या व्यापार प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
रोसनेफ्ट रूस की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है। इसका मार्केट कैप लगभग ७ लाख करोड़ रुपए (८५ बिलियन डॉलर) है।
रिलायंस और रूसी रोसनेफ्ट के बीच २.५ करोड़ टन तेल आयात का समझौता
भारतीय व्यवसायी मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के बीच लंबे समय से मजबूत व्यापारिक संबंध हैं।
रिलायंस भारत की सबसे बड़ी रूसी कच्चा तेल खरीदार है और यह रूस से आने वाले कुल आयात का लगभग आधा संभालती है।
रिलायंस ने दिसंबर २०२४ में रोसनेफ्ट के साथ २५ वर्षों के लिए प्रतिदिन ५ लाख बैरल (सालाना २.५ करोड़ टन) कच्चे तेल आयात का समझौता किया था। इसकी वार्षिक कीमत लगभग १२-१३ अरब डॉलर है।
रिपोर्ट में दावा – भारत रूस से तेल की खरीद घटा सकता है
ट्रम्प के प्रतिबंधों के बाद गुरुवार को दावा किया गया कि भारतीय रिफाइनर्स रूस से तेल के आयात को कम कर सकते हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस सरकार की दिशानिर्देशों के अनुसार अपनी रूसी तेल की खरीद को समायोजित कर रही है। सरकारी कंपनियां भी शिपमेंट की जाँच कर रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत पर रूस से तेल खरीद बंद करने का दबाव डाल रहे हैं। ट्रम्प ने १९ अक्टूबर को दावा किया था कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से बात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि भारत रूस से कच्चे तेल की खरीद बंद कर देगा।
भारत के रूसी तेल खरीद को लेकर ट्रम्प का दावा
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१५ अक्टूबर: “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझे आश्वासन दिया कि भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा। यह एक बड़ा कदम है।”
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१७ अक्टूबर: “भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा। पहले ३८% खरीदते थे, अब ‘पुलिंग बैक’ कर रहे हैं।”
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१९ अक्टूबर: “प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे रूस से तेल नहीं करेंगे। यदि ऐसा नहीं किया, तो भारी टैरिफ देना पड़ेगा।”
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२१ अक्टूबर: “प्रधानमंत्री ने मुझे यकीन दिलाया कि भारत रूस से तेल की खरीद घटाएगा। वह युद्ध समाप्ति चाहते हैं, जैसे मैं चाहता हूं।”
सितंबर में भारत ने ३४% तेल रूस से खरीदा
ट्रम्प के दावे के बावजूद, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल स्रोत बना हुआ है। कमोडिटी और शिपिंग ट्रैकर क्लेप्लर के अनुसार, सितंबर में नई दिल्ली ने आने वाले शिपमेंट का ३४% हिस्सा रूस से लिया। २०२५ के पहले आठ महीनों में आयात में १०% की गिरावट आई थी।
एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त २०२५ में भारत ने रूस से औसतन १.७२ मिलियन बैरल प्रतिदिन (BPD) कच्चा तेल आयात किया। वहीं, सितंबर में यह घटकर १.६१ मिलियन BPD रह गया।
विशेषज्ञों के अनुसार यह कटौती अमेरिकी दबाव और आपूर्ति में विविधता लाने के लिए की गई है। इसके विपरीत, रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनरी कंपनियों ने रूस से तेल की खरीद बढ़ा दी है।
भारत के पास विकल्प
रूसी तेल सस्ता था, अब भारत को मध्य पूर्व या अमेरिका जैसे महंगे स्रोतों से तेल लेना होगा। भारत की कुल आयात में रूसी तेल का बड़ा हिस्सा था, इसलिए रिफाइनिंग लागत बढ़ेगी और पेट्रोल-डीजल के दामों पर असर पड़ सकता है।
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का ८०% से अधिक आयात करता है। मुख्य आपूर्तिकर्ता हैं:
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इराक: रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल प्रदाता, लगभग २१%।
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सऊदी अरब: तीसरा सबसे बड़ा प्रदाता, लगभग १५% (७ लाख बैरल प्रतिदिन)।
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अमेरिका: जनवरी-जून २०२५ में प्रतिदिन २.७१ लाख बैरल, जुलाई में भारत के कुल आयात में ७%।
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साउथ अफ्रीका: नाइजीरिया और अन्य दक्षिण अफ्रीकी देशों से भी तेल प्राप्त होता है।
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अन्य देश: अबू धाबी (UAE) से मुरबान क्रूड, गयाना, ब्राजील और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से भी आयात। हालांकि, ये रूसी तेल की तुलना में महंगे हैं।
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ट्रम्प बोले – भारत दिसंबर तक रूसी तेल खरीदना बंद करेगा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि भारत अब रूस से तेल की खरीद धीरे-धीरे घटा रहा है और वर्ष के अंत तक इसे लगभग समाप्त कर देगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें यह भरोसा दिया है।
