असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अवैध प्रवासियों के विरुद्ध 3D नीति | दावा: असम सरकार ने…

असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने “3D नीति” के अंतर्गत बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध अभियान तेज कर दिया है — “ढूंढो, हटाओ और देश से बाहर करो।”
जून माह में गोलपाड़ा जिले के हसिला बिल क्षेत्र में केवल दो दिन की नोटिस पर 676 घरों को ढहा दिया गया।
सरकार का दावा है कि ये लोग सरकारी भूमि पर बसे अवैध प्रवासी थे, किंतु स्थानीय नागरिकों का कहना है कि वे भारतीय हैं तथा उनके पास 1951 की एनआरसी और 1971 से पूर्व के दस्तावेज मौजूद हैं।
बारपेटा ज़िले की पीड़िता सोना बानो ने कहा —
“मुझे 25 मई को अन्य 13 लोगों के साथ नो-मैन्स लैंड (भारत और बांग्लादेश के बीच का क्षेत्र) में छोड़ दिया गया। मैं दो दिन तक कीड़ों से घिरी रही, फिर मुझे बांग्लादेश की जेल भेजा गया और बाद में भारत लौटाया गया। मैं हमेशा भारत में रही हूँ, अब मुझे अपना नागरिकत्व सिद्ध करना होगा।”
इस बीच, कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार बांग्लादेशियों को निष्कासित करने में विफल रही है। वर्ष 2016 से अब तक केवल 26 लोगों को ही देश से निकाला गया है, शेष निष्कासन कांग्रेस सरकार के समय हुआ था।
जून में गोलपाड़ा जिले के हसिला बिल क्षेत्र में मात्र दो दिन की नोटिस पर 676 घरों को ढहा दिया गया था।
सत्तापक्ष और विपक्ष के तर्क
विपक्ष का आरोप:
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा “पुशबैक नीति” के नाम पर कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। सरकारी अभिलेख बताते हैं कि वर्ष 2017 से 2023 के बीच छह वर्षों में केवल 26 लोगों को ही कानूनी रूप से निष्कासित किया गया। किंतु मुख्यमंत्री का दावा है कि पिछले माह 147 लोगों को देश से निकाला गया है (अर्थात् उन्हें नो-मैन्स लैंड में छोड़ दिया गया)। इस नीति से विवाद तब उत्पन्न हुआ जब दिल्ली और असम के कुछ भारतीय नागरिकों — जिनमें गर्भवती महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे — को गलती से बांग्लादेश भेज दिया गया।
मुख्यमंत्री का कथन (9 जून, असम विधानसभा):
“1971 के बाद आए ऐसे विदेशी, जिन पर कोई न्यायिक मामला लंबित नहीं है, उन्हें ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया के बिना ही बांग्लादेश भेजा जाएगा। जिलाधिकारी (डीसी) को ऐसे व्यक्तियों को निष्कासित करने का अधिकार होगा।”
समाजशास्त्री प्रो. इंद्राणी दत्ता का मत:
“मुख्यमंत्री ने सदन में आँकड़े प्रस्तुत करने के बाद अपनी ‘बांग्लादेशी वापसी’ मुहिम को ढकने हेतु पुनः वही नीति अपनाई है। इससे उनका असली चेहरा उजागर हुआ है।”
नो-मैन्स लैंड में रह रहे पीड़ितों की बातें
प्रकरण 1 – अबुल कलाम (निवासी, गोलपाड़ा कैंप 1):
“14 जून को गोलपाड़ा प्रशासन ने हसिला बिल क्षेत्र में यह कहते हुए बैनर लगाया कि निवासी सरकारी मत्स्यपालन भूमि पर रह रहे हैं और उसे खाली करें। 16–17 जून को पूरी बस्ती गिरा दी गई। हममें से छह-सात लोग 15 जून को उच्च न्यायालय पहुँचे, पर जिनके नाम अदालत में दर्ज थे, उनके घर पहले ही तोड़ दिए गए।”
प्रकरण 2 – लालचंद (मिस्त्री, विस्थापित परिवारों में से एक):
“हम सभी 676 लोग गोविंदपुर में प्लास्टिक की चादरों के नीचे रह रहे हैं। जून से अब तक गर्मी और गंदगी के कारण पाँच लोगों की मृत्यु हो चुकी है। स्थानीय लोग हमें काम भी नहीं देते, उन्हें डर है कि उनके भी घर तोड़ दिए जाएँगे।”
प्रकरण 3 – आरिफा:
“मेरे भाई ने दसवीं में 93% अंक प्राप्त किए थे, पर वह अब कहीं चला गया और हमारा घर भी चला गया। आगे क्या होगा, मुझे नहीं पता। मैं यहीं पैदा हुई हूँ, पर लोग हमें बांग्लादेशी कहते हैं।”
प्रकरण 4 – शाद अली (दमग्रस्त, विस्थापित):
“हममें से कोई भी इतनी स्थिति में नहीं है कि कहीं और जमीन खरीदकर घर बना सके। हम भारत के नागरिक हैं। यदि सरकार ने हमारी रक्षा नहीं की, तो हम और कितने दिन दूसरों की दया पर जीवित रहेंगे?”
