पूर्व सीआईए अधिकारी का दावा: मुशर्रफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियार अमेरिका को सौंपे | पाकिस्तान ने अमेरिका…

तस्वीर में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश दिखाई दे रहे हैं। (फ़ाइल फ़ोटो)
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने अपने देश के परमाणु हथियारों का नियंत्रण अमेरिका को सौंप दिया था। यह दावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकू ने शुक्रवार को किया। किरियाकू ने कहा कि अमेरिका ने मुशर्रफ़ को लाखों डॉलर की मदद के माध्यम से ‘खरीद’ लिया था। उनके शासनकाल में अमेरिका को पाकिस्तान की सुरक्षा और सैन्य गतिविधियों तक लगभग पूरी पहुँच थी। उन्होंने कहा,
“हमने लाखों डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद दी। बदले में मुशर्रफ़ ने हमें सब कुछ करने दिया।”
किरियाकू ने यह बयान न्यूज एजेंसी ANI को दिए गए इंटरव्यू में दिया। उन्होंने यह भी कहा कि मुशर्रफ़ ने दोहरे खेल खेले। उन्होंने एक तरफ अमेरिका के साथ दिखावा किया और दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना और चरमपंथियों को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रखने दिया।
‘2002 में भारत-पाकिस्तान युद्ध होने वाला था’
किरियाकू ने बताया कि 2002 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के कगार पर थे। उन्होंने कहा,
“इस्लामाबाद से अमेरिकी अधिकारियों के परिवारों को निकाल लिया गया था। हमें लगा कि भारत और पाकिस्तान युद्ध में उतर सकते हैं।”
उन्होंने 2001 में संसद हमले के बाद भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन पराक्रम का भी उल्लेख किया। किरियाकू ने दावा किया कि अमेरिकी उप विदेश मंत्री ने दिल्ली और इस्लामाबाद का दौरा कर दोनों देशों के बीच समझौता करवाया।
2008 के मुंबई हमलों पर चर्चा करते हुए किरियाकू ने कहा,
“मुझे नहीं लगता था कि यह अल-कायदा है। मुझे हमेशा लगता रहा कि ये पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह थे। और ऐसा ही साबित हुआ। असली कहानी यह थी कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद फैला रहा था और किसी ने कुछ नहीं किया।”
किरियाकू ने कहा कि भारत ने संसद और मुंबई हमलों के बाद संयम दिखाया।
पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक को सऊदी अरब ने बचाया
पूर्व CIA अधिकारी ने यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान को अमेरिकी कार्रवाई से बचाने में सऊदी अरब की अहम भूमिका थी। सऊदी ने अमेरिका से कहा कि खान को न छेड़ा जाए, जिससे अमेरिका ने अपना योजना त्याग दी।
किरियाकू ने अमेरिकी विदेश नीति पर भी सवाल उठाए और कहा कि अमेरिका लोकतंत्र का ढोंग करता है, लेकिन वास्तव में अपने स्वार्थ के अनुसार काम करता है। उन्होंने यह भी बताया कि सऊदी और अमेरिका का संबंध पूरी तरह लेन-देन पर आधारित है; अमेरिका तेल खरीदता है और सऊदी हथियार।
किरियाकू ने कहा कि वैश्विक शक्तियों का संतुलन बदल रहा है और सऊदी अरब, चीन और भारत अपनी रणनीतिक भूमिका को नया आकार दे रहे हैं।
